आखिर मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा होने से पूर्व आंखों में क्यों बांधते हैं पट्टी?

जैसे-जैसे प्राण प्रतिष्ठा की तारीख नजदीक आ रही है वैसे ही अयोध्या नगरी में कार्य बड़ी ही तीव्र गति से हो चुका है। निरंतर सभी राम भक्तों की यही इच्छा है की प्राण प्रतिष्ठा से पहले लगभग सभी कार्यों को पूरा कर लिया जाए। दोस्तों हम सभी यह तो जानते ही की अयोध्या मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम जी की नगरी में बहुत समय पश्चात मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा का समारोह होने जा रहा है। सभी भारतवासी इसको लेकर काफी उत्सुक भी है। सभी के लिए यहां एक हर्ष का विषय बन चुका है। हम सभी जानते हैं कि मंदिर में भगवान श्री राम जी बाल स्वरूप में विराजमान होंगे लेकिन दोस्तों आपने कभी देखा होगा कि जब मंदिर में मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा होती है। उससे पूर्व मूर्ति की आंखों पर पट्टी बांधी जाती है। कभी इसके बारे में बहुत लोगों के मन में सवाल आया होगा कि यह पट्टी क्यों बांधते हैं क्या वजह है और इसको आंखों पर क्यों बांधते हैं तो दोस्तों बता दे कि इसके पीछे बहुत ही खास वजह है। जिनको हम निम्न माध्यम से विस्तार से जानते हैं।

 

आखिर मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा होने से पूर्व आंखों में क्यों बांधते हैं पट्टी?

जब भी मंदिर में भगवान जी की मूर्ति स्थापित होती है तो उसके पूर्व उनकी आंखों पर पट्टी बांधी जाती है। यहां कई लोगों के लिए एक गुत्थी से कम नहीं है। कई सारे लोगों को इसकी वजह मालूम नहीं है। इसके पीछे बहुत बड़ा कारण है चलिए जिसके बारे में हम बात करते हैं। आखिर राम मंदिर में भी रामलला की जो मूर्ति है उनकी आंखों पर भी पट्टी बांधी गई है तो इसके पीछे का कारण हिंदू धर्म शास्त्रों के अनुसार जाने तो जब सर्वप्रथम मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा होती है। तब वेद मंत्रों का उच्चारण सच्चे भाव से किया जाता है। वेद मंत्रों से जो ऊर्जा प्रकट होती है वहां प्रकाश पुंज शक्ति मूर्ति में प्रवेश करती है। शक्ति बाहर न निकले जिस कारण आंखों पर पट्टी बांधने का नियम होता है। इस पट्टी को प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम पूर्ण होने पर सफलतापूर्वक छोड़ दिया जाता है। जैसे ही आंखों से पट्टी को खोला जाता है। तब उसमें जो ऊर्जा संक्षिप्त होती है वह नेत्र खुलते ही तेजोमय प्रकाश के रूप में बाहर आती है। अर्थात ऊर्जा शक्ति सीधे तौर पर नेत्र के द्वारा ही बाहर आती है। जब भी नेत्र से पट्टी को हटाया जाता है तब बहुत सावधानी पूर्वक इस कार्य को अंजाम दिया जाता है मतलब कि जब नेत्र से पट्टी को हटाया जाता है तो इसके सामने कोई भी व्यक्ति नहीं होना चाहिए क्योंकि ऐसा कहा जाता है कि मानव शरीर के लिए इस ऊर्जा शक्ति को सेहन करना कठिन है। जिस वजह से ही रंग प्रतिष्ठा समाप्त होने पर मूर्ति के बगल में खड़े होकर ही पट्टी को नेत्र से खोला जाता है।

 

आखिर ऐसा क्या होता है प्राण प्रतिष्ठित मूर्ति की ऊर्जा में?

दोस्तों आपको बता दे की जिस किसी भी भगवान की प्राण प्रतिष्ठित मूर्ति होती है उसमें बहुत ही अद्भुत एवं विचित्र ऊर्जा होती है। जब प्राण प्रतिष्ठा का कार्य समाप्त होता है और तब जो पट्टी को नेत्र से बगल में खड़े होकर खोला जाता है। तब जो ऊर्जा निकलती है उसकी गति बहुत ही तीव्र होती है अगर उसके सामने दर्पण लगाया जाता है तो वहां तेजोमय शक्ति दर्पण से टकरा भी सकती है। कहा जाता है कि कभी-कभी ऊर्जा का प्रभाव इतना खतरनाक होता है कि दर्पण भी खंडित हो जाता है। दोस्तों आप इन बातों से जान चुकी होगी कि आखिर इस ऊर्जा का प्रभाव कितना खतरनाक होता है।

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